कथा वाचन: भारत की एक पूजनीय परंपरा

कथा वाचन भारत भूमि की एक बहुत प्राचीन पूजनीय परम्पराओं में से एक है. भारत की अलौकिक लोककथाओं तथा रामायण और महाभारत जैसे ग्रंथों को प्रचलित बनाने में कथा वाचन का अपना सबसे बड़ा योगदान है. किन्तु, कथा वाचन एक परंपरा ही नहीं, अपितु एक ऐसी प्रथा है जिसका मूल्य किसी भी व्यक्ति के लिए तब तक समझना सही तरह से संभव ही नहीं है जब तक भारत की भावना को समझने का प्रयास नहीं किया जा सके.

भारत एक ऐसा देश है जो जीवन के मूल्यों को केंद्रित करके अपनी सभी परम्पराओं को समाज के समक्ष लता है. इसका सबसे बड़ा उदहारण है “अतिथि देवो भवः: या गुरु ब्राह्म गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरः: इत्यादि मूल्य जिनको भारतीय समाज में बड़े ही आदर के साथ उच्चतम स्थान दिया गया है. आजके आधुनिक भारत में भी यह मूल्य उच्चकोटि का स्थान बनाये हुए हैं जिसका कारण केवल यह है की बदलते समय के साथ जीवन के बदलाव इन सभी मूल्यों को परिवर्तित नहीं कर पाए.

भारत ने निश्चित रूप से आधुनिक परिवेश और अर्वाचीन संस्कृति का अनुमोदन करना आरम्भ कर दिया है किन्तु भारतीयता आज भी अपनी संस्कृति के लिए जागृत है. भारत में गुरु को ब्रम्हा का स्थान तथा अतिथि को ईश्वर का स्थान देनेवाली भारतीय भावना किसी भी तर्क वितर्क से परे है तथा आज भी भारतीय संस्कृति का प्रतीक है.

भारत की ऐसी संस्कृति का प्रचार करनेका श्रेय भारत की लोक परंपरा को सर्वाधिक रूप से निश्चित ही जाता है जिसने भारत की पौराणिक कला और धार्मिक संस्कारों को समग्र विश्व में उजागर किया है. इसीलिए सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी समाज में अपना स्थान बनाये है. आधुनिक समाज में भले ही इन लोककलाओं को अन्य वैज्ञानिक प्रद्योगिकी धाराओं की तुलना में विशेष रूप से पूर्वकालीन माना जाता हो, किन्तु आज भी लोककथा, लोकगीत लोकनृत्य इत्यादि भारतीय समाज में भारत की विभिन्न संस्कृतियों और कलाओं का विशेष रूप से प्रदर्शन है तथा भारतीय संस्कृति को विश्वभर में ख्याति दिलानेवाला एक बहुत सराहनीय माध्यम है जिसे आज निश्चित रूप से एक उत्कृष्ट स्थान प्राप्त है.

इस विशेष ख्याति का कारण मुख्य रूप से यह भी है कि यह कला धार्मिक ग्रंथों तथा पुराणों के गूढ अर्थ को सरल तथा रोचक रूप से प्रस्तुत करती है. इससे श्रोता व् दर्शक इन कथाओं के साथ आत्मसाद कर सकते हैं.

श्री रामानुजन उदहारण स्वरुप हमारे समक्ष एक कथा प्रस्तुत करते हैं जिसमे अपनी पत्नी के कहने पर रामायण के कथा वाचन प्रदर्शन “रामलीला” प्रस्तुति को देखने आये एक दर्शक ने इस कथा को इतना रोचक पाया कि वो सीता की खोई हुई अंगूठी को स्वयं ढूढ़कर लाने का प्रस्ताव मंच पर ले आया.

कथा वाचन के गीत, नृत्य और नाट्य के द्वारा अत्यधिक मनोरंजक बनाने कि परंपरा भी इस कला को प्रचलित करती है. रामायण तथा महाभारत कि कथाओं का नाट्य रुपी गान करनेवाली हमारी कथा वाचन संस्कृति की शुरुआत भक्ति सन्देश को बल देने के हेतु से हमारे संतों ने भारत में की जिसके कारण यह कला आज भी मंदिरों में कीर्तन के रूप में प्रसिद्ध है. मीराबाई, नरसिहं मेहता सूरदास, रैदास, चैतन्य महाप्रभु इत्यादि संतों के अनन्य प्रयासों के कारण ही कथा वाचन को आज भारत के विभिन्न प्रांतों में कथा सप्तक के रूप में पूजा जाता है जिसमे रामायण, महाभारत, शिव महापुराण, देवी पुराण इत्यादि ग्रंथों का सार देने के लिए संतों को विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता है. श्री मोरारी बापू द्वारा विश्वभर में गाई जानेवाली रामायण कथा इसका उत्कृष्ठ प्रमाण है.

कथा वाचन को आदर मिलने का एक और मुख्य कारण है कथा वाचक की प्रतिभा जो कि इन रोज रोज सुनाई जानेवाली कथाओं को एक नया स्वरुप देती है. जात्रा, भवाई, यक्षगान इत्यादि लोकनाट्यों में धार्मिक तथा लोक कथाओं को कई बार एक नए ही स्वरुप में प्रगट किया जाता है.

जात्रा की एक प्रस्तुति में कैकई तथा विश्वामित्र के संवाद को दर्शाया गया है जिसमे कैकई राम को वन भेजने के अपने निर्णय को अपनी इच्छा के विरुद्ध लिए गए निर्णय के रूप में प्रस्तुत करती है. पौराणिक रामायण में जहाँ कैकई को एक दोषी के रूप में दर्शाया गया है, इस तरह की प्रस्तुति, रामायण का एक अनोखा किन्तु एक रोचक पहलु हमारे समक्ष लती है जिसे सुनने व् देखने के लिए हम उत्सुक होते हैं. ऐसी ही एक प्रस्तुति है रावण के समक्ष उनकी रानी मंदोदरी का सीता को मुक्त करनवानेका एक जटिल प्रयास जोकि एक स्त्री का अत्यंत सम्माननीय स्वरुप हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है.

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कथा वाचन के ये अनेकों प्रयत्न जिनमे प्राचीन कहानियों को एक नए दृष्टिकोण से देखने की आवश्यकता को हमारे समक्ष सिद्ध किया जाता है, इस कला को अत्यंत लोकप्रिय बनाते हैं. इतना ही नहीं, आज हम कथानक के नयेपन के साथ, इनकी प्रस्तुति में भी अनेको आधुनिक रंगारंग साधनों का समावेश भी देख सकते हैं. जहाँ प्राचीन समय में कथा वाचक एक प्राचीन एकतारा लेकर इन कहानियों को सुनाया करते थे, वहीँ, आज, आधुनिक वाद्यों तथा अर्वाचीन रंगमंच के विभिन्न साधनो जैसे, लाइट्स, कैमरा इत्यादि के साथ इनकी मंच पर आधुनिक प्रस्तुति भी समग्र विश्व के दर्शकों का ध्यान अपनी तरफ केंद्रित करती हैं.

जब विश्वविख्यात प्रसंगों को आज अर्वाचीन ढंग से समाज के समक्ष प्रस्तुत किया जाये तो यह बार बार कही जानेवाली कथाएं हमें रोचक और आनंददायी ही लगती हैं. कृष्ण सुदामा की मित्रता हो, या कृष्ण के द्वारा कालिया नाग का दहन हो, या देवी द्वारा महिषासुर वध हो या राम और सीता की रामायण कथा हो या फिर पंचतंत्र और जातक या कथासरितसागर की अनेकों लोकगाथाएँ जैसे विक्रम और बेताल की कथाएं हो, ये सभी हम न जाने कितनी बार कथा वाचन के माध्यम से सुनना और देखना पसंद करते हैं. आज इस परमपरा की लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है की टेलीविज़न पर इन कथाओं ने समय समय पर दर्शकों को आकर्षित किया है.

इस आधुनिक टेलीविज़न पर आनेवाली ये प्रस्तुतियां इस बात का भी प्रमाण है की भारत अपनी संस्कृति के साथ अर्वाचीन है.

भारत की इस अर्वाचीन संस्कृति का प्रतिनिधित्व करनेवाली यह कथा वाचन परंपरा लोगों को अपनी इच्छानुसार कथानकों को समझने का अवसर भी देती हैं क्योंकि इन प्रस्तुतियों को शिक्षात्मक ढंग से नहीं बताया जाता अपितु कहानी कहकर सुननेवाले को मनोरंजन देने के हेतु से कहा सुनाया जाता है. आचार्य मम्मट ने अपने ग्रन्थ काव्यप्रकाश में कहा है कि एक कहानी के माध्यम से दिया हुआ उपदेश निश्चित ही एक सूंदर स्त्री द्वारा दिए हुए उपदेश जैसा रोचक प्रतीत होता है.

दादी नानी कि कहानियां इसी कारण हमें रोचक प्रतीत होती हैं कि यह कहानियां हमारे बुज़ुर्ग हमें बचपन में मनोरंजन देने के लिए मुख्य रूप से कहते थे किन्तु इसी के साथ वह हमें इन कथानकों के अंत में इनमे छुपे हुए मौलिक उपदेश को भी बड़े ही अनोखे ढंग से समझाते थे जो कि हमें उपदेश नहीं अपितु रोचक उपदेश लगता था जिसे हम आज भी ध्रुव, प्रह्लाद , सत्यवान सावित्री, नल दमयंती जैसी प्रेरक कहानियों के रूप में बड़े चाव के साथ याद रखते हैं तथा अपने छोटों को भी सुनाते हैं. इसी कहने सुनाने कि प्रथा को भारत के घर घर में आज भी एक संस्कार के रूप में अपनाया गया है जो कि आज प्रत्येक भारतीय को अपने देश की एक प्राचीन परम्परा को अपनाकर चलने का गौरव प्रदान करता है. जहाँ मुख्य रूप से विश्वभर में अन्य लोककलाओं को विभिन्न लोकप्रथाओं का प्रतिनिधि माना गया है, वहीँ, कथा वाचन को प्रत्येक घर में एक घरेलु परंपरा के रूप में स्थान मिलता है जिसमे घर के सदस्य साथ मिलकर कहानी कहने की प्रथा का आनंद उठाते हैं. यह कई बार गीत और नृत्य के साथ इन कहानियों को नाटकीय रूपांतरण के साथ भी घर ही में प्रस्तुत किया जाता है जिसके लिए किसी भी बड़े आधुनिक मंच कि आवश्यकता नहीं है.

श्री गिरीश कर्नाड ने अपने नाट्य नागमंडल में ऐसी ही घर घर में कही जानेवाली कहानियों की प्रथा को स्थान दिया है जिसमे कहानी कहने की आवश्यकता को भी दर्शाया गया है कि कहानी को किसी और को कहना आवश्यक है अगर वो न कही जाये तो वह समाप्त हो जाती है. इसलिए एक कथानक को जीवित रखने के हेतु से उसे कहना आवश्यक है. कथा वाचन पौराणिक कथाओं को आज भी जीवित रखे है और उनका महत्व भी हमें समझाती है. इसलिए यह केवल एक परंपरा ही नहीं अपितु एक अनुभूति है कि कहानियां हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है.

हम सभी कहानीकार हैं ही! हम सभी एक दूसरे को दिन में कोई न कोई कथा सुनाते हैं, तथा सुनते भी हैं, चाहे वह हमारे साथ घटी दिन भर कि वास्तविक घटना हो या फिर कोई काल्पनिक कथा. कहानी कहने और सुनने कथा की यह प्रथा विश्वभर में प्रख्यात है और इसी कारण वसुधैव कुटुम्बकम का एक उत्तम उद्धरण हमारे समक्ष प्रस्तुत भी करती हैं जो समाज के हर व्यक्ति को कहानी कहने के माध्यम से एक सूत्र में पिरोये हुए है. एसोप के कथानक हों या अरेबियन नाइट्स कि कहानियां, या फिर भारत कि पारम्परिक कथाएं, कहानी हरेक को सुननी अच्छी ही लगती हैं. इसिलए, कथा वाचन को विश्वभर में आदर दिया गया है. भारत में इस परंपरा को विशेष महत्व दिया गया है गया है क्योंकि भारत में जीवन के धार्मिक मूल्यों जैसे “सत्यम वद, सत्य बोलो, धर्मं चर, धर्म का आचरण करो, स्वाध्यायत न प्रमादित्यवयम स्व अध्ययन में कभी भी आलस्य मत करो इत्यादि को उच्चतर स्थान दिया गया है. इन्ही मूल्यों पर केंद्रित भारत कि रामायण, महाभारत, पंचतंत्र, जातक आदि कथाएं तथा उनका कथन भारतीय संस्कृति के लिए निश्चय ही पूजनीय है.

डा. पायल त्रिवेदी.

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